Thursday 29 January 2015

नाभि स्पंदन से रोग की पहचान

प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धति

आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं। नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके।
कैसे होती है नाभि स्पंदन से रोगों की पहचान
यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो अग्न्याश्य खराब होने लगता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाए तो पतले दस्त होने लगते हैं। बाईं ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी-जुकाम, खाँसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं।
यदि यह ज्यादा दिनों तक रहेगी तो स्थायी रूप से बीमारियाँ घर कर लेती हैं। दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है। पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती हैं। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। यदि नाभि पेट के ऊपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है। वायु विकार हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जाएगा।
नाभि के खिसकने से मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताएँ कम हो जाती हैं। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। कहते हैं मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छ: मिनट तक रहते है। यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब स्त्रियाँ गर्भधारण योग्य होती हैं। यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियाँ गर्भ धारण नहीं कर सकतीं।
अकसर यदि नाभि बिलकुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है तो फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। कई वंध्या स्त्रियों पर प्रयोग कर नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया गया। इससे वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो गईं। कुछ मामलों में उपचार वर्षों से चल रहा था एवं चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि यह गर्भधारण नहीं कर सकती किन्तु नाभि-चिकित्सा के जानकारों ने इलाज किया।
उपचार पद्धति आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में पूर्व से ही विद्यमान रही है। नाभि को यथास्थान लाना एक कठिन कार्य है। थोड़ी-सी गड़बड़ी किसी नई बीमारी को जन्म दे सकती है। नाभि-नाडिय़ों का संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है।
यदि गलत जगह पर खिसक जाए व स्थायी हो जाए तो परिणाम अत्यधिक खराब हो सकता है। इसलिए नाभि नाड़ी को यथास्थल बैठाने के लिए इसके योग्य व जानकार चिकित्सकों का ही सहारा लिया जाना चाहिए। नाभि को यथास्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें। सुबह खाली पेट उपचार के लिए जाना चाहिए, क्योंकि खाली पेट ही नाभि नाड़ी की स्थिति का पता लग सकता है।

Saturday 24 January 2015

बसंत पंचमी


पतझड़ में पेड़ों से पुराने पत्तों का गिरना और इसके बाद नए पत्तों का आना बसंत के आगमन का सूचक है। इस प्रकार बसंत का मौसम जीवन में सकारात्मक भाव, ऊर्जा, आशा और विश्वास जगाता है। यह भाव बनाए रखने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि ज्ञान और विद्या की देवी की पूजा के साथ बसंत ऋतु का स्वागत किया जाता है ।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी बसंत पंचमी के रूप में मनाई जाती है। यह बसंत ऋतु के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। यह दिन सरस्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसे श्री पंचमी भी कहते हैं। इस दिन ज्ञान की प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती की पूजा की परंपरा है। इस दिन माता सरस्वती, भगवान कृष्ण और कामदेव व रति की पूजा की परंपरा है। बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंच-तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रुप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है तो जल! पीयूष के समान सुखदाता! और धरती! उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है! ठंड से ठिठुरे विहंग अब उडऩे का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता! धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताडऩा से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं। बसंत ऋतु का आगमन बसंत पंचमी पर्व से होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। पत्रपटल तथा पुष्प खिल उठते हैं। स्त्रियाँ पीले- वस्त्र पहन, बसंत पंचमी के इस दिन के सौन्दर्य को और भी अधिक बढ़ा देती हैं। लोकप्रिय खेल पतंगबाजी, बसंत पंचमी से ही जुड़ा है। यह विद्यार्थियों का भी दिन है, इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा आराधना भी की जाती है।
बसंत पंचमी के पर्व को मनाने का एक कारण बसंत पंचमी के दिन सरस्वती जयंती का होना भी बताया जाता है। कहते हैं कि देवी सरस्वती बसंत पंचमी के दिन ब्रह्मा के मानस से अवतीर्ण हुई थीं। बसंत के फूल, चंद्रमा व हिम तुषार जैसा उनका रंग था।
बसंत पंचमी के दिन जगह-जगह माँ शारदा की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ सरस्वती की कृपा से प्राप्त ज्ञान व कला के समावेश से मनुष्य जीवन में सुख व सौभाग्य प्राप्त होता है। माघ शुक्ल पंचमी को सबसे पहले श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन किया था, तब से सरस्वती पूजन का प्रचलन बसंत पंचमी के दिन से मनाने की परंपरा चली आ रही है।
सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है। कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया।
सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- 'स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम।Ó यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूँ, यही मेरी इच्छा है। इस तरह देवों को बचाने के लिए सरस्वती और भी पूज्य हो गईं। मध्यप्रदेश के मैहर में आल्हा का बनवाया हुआ सरस्वती का प्राचीन मंदिर है। वहाँ के लोगों का विश्वास है कि आल्हा आज भी बसंत पंचमी के दिन यहाँ माँ की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

Thursday 22 January 2015

ज्यादा बैठे रहने से भी होती हैं ये बीमारियां...


लम्बे समय तक बैठने से भी हमारे शरीर में कुछ ऐसे परिवर्तन होने लगते हैं जो कि हानिकारक होते हैं। भले ही हम इन पर गौर न कर पाते हैं। उदाहरण के लिए अगर हम टीवी के सामने लम्बे समय तक बैठे रहते हैं तो यह भी हानिकारक है और इससे व्यक्ति कई तरह बीमारियों का शिकार हो सकता है।
आमतौर पर हम दफ्तरों में भी करीब 8-10 घंटे तक कम्प्यूटर के सामने बैठे रहते हैं और यह स्थिति भी निरापद नहीं है क्योंकि इस कारण से आपके सिर से लेकर पैर तक बीमारियां अपनी मौजूदगी बना सकती हैं।

हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल

लम्बे समय तक बैठने से विभिन्न अंगों को नुकसान हो सकता है। लम्बे समय तक बैठे रहने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या हो सकती है और कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है। 

मांसपेशियों में कमजोरी

आप बैठे रहते हैं तो पीठ और पेट की मांसपेशियां ढीली पडऩे लगती हैं। इसी स्थिति के चलते आपके कूल्हे, पैरों की मांशपेशियां कमजोर पडऩे लगती हैं।

ऑस्टियोपोरोसिस

लम्बे समय तक बैठे रहने से लोगों का वजन भी बढ़ता है और इसके परिणामस्वरूप कूल्हे और इसके नीचे के अंगों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण ही ऑस्टियोपोरोसिस या अस्थि-सुषिरता जैसी बीमारियां आम होती जा रही हैं।

गर्दन में तनाव

लम्बे समय तक कम्प्यूटर पर बैठने या टाइप करने से गर्दन भी सख्त हो जाती है। इस
अस्वाभाविक हालत का परिणाम यह होता है कि गर्दन में तनाव पैदा हो जाती है। इसके कारण कंधों और पीठ में भी दर्द होने लगता है।

पीठ पर बुरा असर

एक जैसी स्थिति में बैठे रहने से रीढ़ की हड्डी की नमनीयता की विशेषता दुष्प्रभावित होती है और इसमें डिस्क क्षतिग्रस्त भी हो सकते हैं। इसलिए सही अवस्था में बैठने के लिए उपाय करने चाहिए।

Wednesday 21 January 2015

सुबह की कसरत के लाभ


क्या आपने कभी सुबह के दौरान सड़कों को देखा है कुछ लोग बातें करते हुए टहलते है, कुछ दौड़ लगाते है, कुछ ट्रैक सूट में जा रहे होते है, तो कोई फुटबाल या क्रिकेट की ड्रेस में होता है। ये सारा दृश्य सुबह की सैर का होता है। हर शहर में आपको मॉर्निग वॉक करते हुए लोग दिख जाएंगे क्योकि वह सुबह के व्यायाम को स्वास्थ्य के लिए बेहतर मानते है। वजन कम करने के लिए मेटाबोल्जिम बढ़ाने के लिए सुबह व्यायाम करने में शरीर और मन दोनों दुरूस्त रहते है और सारा दिन ताजगी महसूस होती है। पुराने जमाने से ही लोग, ब्रहम मुहुर्त में उठते आ रहे है और सुबह हल्की कसरत करते है। हमारे वेदों और पुराणों में भी सुबह के व्यायाम के बारे में बतलाया गया है। सुबह के व्यायाम व कसरत के कई लाभ होते है। इनमें से कुछ लाभ निम्न प्रकार के है-
  • आपको ताजगी प्रदान करें सुबह की ताजी हवा और खिला - खिला वातावरण, सारा दिन आपको ताजगी प्रदान करता है। सुबह उठकर वर्कआउट के रूप में योगा या डांस करें, आप चाहें तो टहल भी सकते है। ऐसा करने से स्वास्थ्य सही रहेगा और शरीर में हार्मोन्स भी संतुलित बने रहेगें।
  • अनुशासित मॉर्निग वर्कआउट करने से आपका शरीर अनुशासित रहता है। इसे करने से शरीर की सभी क्रियाएं, रक्त परिसंचरण, आदि सही तरीके से होता रहता है। अगर बीच में कभी आप वर्कआउट न भी करें, लेकिन आपकी नींद ठीक उसी वक्त खुल जाती है। आपको ठीक उसी वक्त भूख लगती है और पाचन क्रिया भी दुरूस्त रहती है। एक्सरसाइज करने से रात में नींद भी अच्छी आती है।
  • सही दिनचर्या का निर्माण सुबह वर्कआउट करने के लिए आप सही समय पर उठेगें और सही समय पर उठने के कारण बाकी के काम भी सही समय पर निपटते रहेगें। इसके बाद आप सही टाइम पर नाश्ता कर लेगें। शरीर में खाने का पाचन भी सुचारू रूप से होगा। इसके अलावा, शरीर का क्रियान्वयन भी अच्छी तरह होगा। पाचन सम्बंधी किसी भी समस्या के होने पर मार्निंग वर्कआउट लाभकारी होता है।
  • एक बार आप सुबह का वर्कआउट शुरू कर दीजिए, तो आपके शेड्यूल में यह शामिल हो जाएगा। इससे आप अपने सभी कामों में नियमित हो जाएंगे और एक रूटीन बन जाएगा। आजकल हर कोई व्यस्त रहता है, ऐसे में वर्कआउट के लिए समय निकालना मुश्किल होता है, एक टाइम सेट हो जाने के आप खुद-ब-खुद करने लग जाएंगे।
  • अच्छे परिणाम के लिए मॉर्निग वर्कआउट, सामान्यत: नाश्ते से पहले करना चाहिए। खाली पेट, हल्की - हल्की एक्सरसाइज करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और खाने के बाद की जाने वाली एक्सरसाइज से ज्यादा लाभकारी होता है। सुबह की ताजी हवा भी फेफड़ों को मजबूती प्रदान करती है और सारा दिन शरीर को मिलने वाली ऑक्सीजन से ज्यादा ऑक्सीजन भी प्रदान करती है। सुबह के सूर्यप्रकाश में ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक गुण होते है जो शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते है। इन्ही सब कारणों से सुबह का वर्कआउट ज्यादा लाभकारी होता है।

Tuesday 20 January 2015

8 घंटे की नींद बनाए स्लिम-ट्रिम


आप दुबले होना चाहते हैं तो इसके लिए कुछ खास करने की जरूरत नहीं बस रोजाना 8 घंटे की नींद लीजिए और बने रहिए छरहरे। एक अध्ययन के अनुसार दुबले बने रहने का यह सबसे आसान तरीका है।
दी डेली टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार अंतरराष्ट्रीय अनुसंधानकर्ताओं के समूह ने एक अध्ययन में पाया है कि नियमित तौर पर 6 घंटे से कम या फिर 9 घंटों से ज्यादा नींद लेने वाले लोगों का वजन उन लोगों की तुलना में अधिक हो जाता है जो रोज 7 से 8 घंटे सोते हैं।
अध्ययन के अनुसार नींद की अवधि शरीर में मौजूद हार्मोन्स को प्रभावित करती है। यही वजह है कि कम या ज्यादा नींद का असर व्यक्ति के वजन पर पड़ता है। अनुसंधानकर्ता के अनुसार इस अध्ययन से इस बात का सबूत मिल गया है कि कम या ज्यादा सोने से भविष्य में शरीर पर चर्बी जमा होने की संभावना बढ़ जाती है। यह अध्ययन वयस्कों के लिए है। इस अध्ययन में वातावरण कारकों को आवश्यक रूप से शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि वजन के कम या ज्यादा होने में इनका भी योगदान रहता है। चूंकि मोटापे को रोका जाना बेहद जरुरी है, इसलिए नींद की अवधि के साथ व्यायाम करने और पोषक आहार के प्रति लोगों का रूझान बढ़ाने की भी जरूरत है।
21 से 64 वर्ष आयुवर्ग के 276 वयस्कों की नींद की आदतों का 6 साल तक अध्ययन करने के बाद अनुसंधानकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि पर्याप्त नींद नहीं लेने वाले लोगों का वजन उन लोगों की तुलना में 2 किलो अधिक हो गया जो लोग 7 से 8 घंटे की नींद लेते थे। इस अवधि से अधिक सोने वालों का वजन भी आदर्श अवधि की नींद लेने वालों की तुलना में 1.58 किलो बढ़ गया था।
आदर्श अवधि की नींद लेने वालों की तुलना में कम सोने वाले 27 प्रतिशत अधिक मोटे हो गए थे और ज्यादा सोने वाले 21 प्रतिशत अधिक मोटे हो गए थे। बहुत ही कम नींद लेने वाले लोगों की स्थिति तो और भी खराब थी। 6 सालों में उनका वजन 5 किलो तक बढ़ गया। बहुत ही ज्यादा सोने वालों का भी वजन 6 साल में 5 किलो बढ़ गया।

Monday 19 January 2015

सेक्स लाइफ को तबाह कर रहे हैं स्मार्टफोन!


पिछले दिनों एक अध्ययन में यह दावा किया गया था कि फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और पैसों की टेंशन युवाओं की सेक्स लाइफ बर्बाद कर रहे हैं। वहीँ, अभी एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया है कि स्मार्टफोन और लैपटॉप भी सेक्स लाइफ को तबाह कर रहे हैं।
डेलीमेल वेबसाइट पर प्रकाशित शोध की मानें तो महिलाएं स्मार्टफोन और लैपटॉप के आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल को अपनी सेक्स लाइफ घटने की वजह मानती हैं। ब्रिघेम यंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर यह दावा किया है कि 70 प्रतिशत महिलाएं अपने तलाक की बड़ी वजहों में से एक बिस्तर पर फोन व लैपटॉप का अधिक इस्तेमाल मानती हैं। उनका यह भी मानना है कि स्मार्टफोन के अधिक इस्तेमाल के कारण उनके संबंध से रोमांस कम होता जा रहा है।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि महिलाओं के लिए तलाक के पीछे बड़े कारणों में से एक कारण रात के समय सोशल मीडिया पर पुरुषों की सक्रियता होना भी बताया जा रहा है। उनके अनुसार, अक्सर पति और पत्नी में फेसबुक और दोस्तों के साथ चैट जैसे विषयों को लेकर अधिक झगड़ा होने लगा है। इतना ही नहीं, इस तरह के झगड़ों के भविष्य में और अधिक बढ़ते रहने की संभावना बन रही है।
एक शोधकर्ता के अनुसार, यह समस्या आप हर जगह महसूस कर सकते हैं। किसी भी रेस्तरां में आपको ऐसे जोड़े मिलते होंगे जो एक-दूसरे को समय देने के बजाय अपने-अपने फोन पर लगे रहते हैं और यही बात जोड़ों के आपस की निकटता को कम करने में लगी हुई है। शोध के दौरान 143 महिलाओं से उनकी सेक्स लाइफ और उनकी व साथी की फोन, टीवी, कंप्यूटर और टैबलेट से संबंधित आदतों के विषय में जानकारी इक_ा की गई। यह शोध साइकोलॉजी ऑफ पॉपुलर मीडिया कल्चर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
गौरतलब है कि इससे पहले एक अध्ययन में यह दावा किया गया था कि फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और पैसों की टेंशन युवाओं की सेक्स लाइफ बर्बाद कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक़, 15 हजार ब्रिटेनवासियों पर की गई इस रिसर्च में पाया गया है कि 16 से 44 साल की उम्र के लोग महीने में पांच से भी कम बार सेक्स करते हैं।
रिसर्च से जुड़े एक विशेषज्ञ ने कहा कि मॉडर्न लाइफ कपल्स के यौन संबंधों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। आजकल युवा जॉब और पैसों की तंगी को लेकर बेहद तनाव में रहते हैं जिससे उनका सेक्स करने का मूड मर जाता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से जुड़े डॉ. कैथ मर्सर का कहना है कि एडवांस और आधुनिक टेक्नोलॉजी की वजह से भी ऐसी स्थिति पैदा हुई है। आज कल लोग अपने बेडरूम में भी टैबलेट व स्मार्टफोन के जरिए फेसबुक-ट्विटर पर लगे रहते हैं। वह लगातार अपने ईमेल के जवाब देते रहते हैं। इन आदतों की वजह से सेक्स की ओर उनका झुकाव कम होता जा रहा है।
सर्वे में यह बात भी उजागर हुई कि इस तरह के ट्रेंड में 16 से 44 साल के बीच की उम्र के लोग सेक्स के विकल्प के तौर पर पोर्न फिल्में देखने लगे हैं। नेटसेन सोशल रिसर्च द्वारा कराए गए इस सर्वे का विश्लेषण यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और लंदन स्कूल ऑफ हायजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के रिसर्चरों ने किया था।

Sunday 18 January 2015

रसीली गाजर के 10 मीठे गुण


लाल और मीठी गाजर को देखकर तुंरत हलवे की याद आ जाती है। निश्चित तौर पर गाजर के इस्तेमाल से बनने वाला हलवा है ही इतना लाजवाब। गाजर न सिर्फ स्वाद में अच्छी होती है बल्कि इसमें आपको तंदुरुस्त रखने के लिए बहुत सारे खास गुण होते हैं। यह आपको स्वस्थ रखने के साथ साथ आपकी आंखों की रोशनी को बढ़ाती है। गाजर का नियमित इस्तेमाल आपके बालों और त्वचा के लिए भी बहुत लाभकारी है। गाजर के ज्यूस को अपनी रोजाना की डाइट का हिस्सा बना लीजिए क्योंकि यह स्वादिष्ट होने के साथ बहुत गुणकारी है।
  • गाजर के ज्यूस को खास गुणों से भरपूर बनाने का काम इसमें मौजूद बीटा-केरोटिन, विटामिंस और पोटेशियम करते हैं। बीटा-केरोटिन से गाजर विटामिन ्र का सबसे प्रभावकारी स्त्रोत बनती है। गाजर से शरीर के इम्यून सिस्टम को ताकत मिलती है। विटामिन ्र से न केवल आपकी आंखों की रोशनी बढ़ती है बल्कि गाजर के ज्यूस का नियमित इस्तेमाल दिल की बीमारियों से भी आपको बचाए रखता है।
  • गाजर के ज्यूस में होने वाला पोटेशियम शरीर में कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करता है। गाजर में लीवर को ठीक रखने का भी गुण होता है। पोटेशियम, मैगनीज और मैगनेशियम के साथ मिलकर ब्लड शुगर के स्तर को सामान्य रखता है और इस तरह से शरीर में डायबीटिज के खतरे को कम करता है।
  • ग़ाजर के ज्यूस में विटामिन  ्र होता है जो कि चोट लगने पर रक्त के थक्के जमने में मदद करता है और खून का बहना रोकता है। विटामिन  ्र चोट ठीक करने में कारगर है। गाजर में मौजूद विटामिन ष्ट घाव ठीक करने के साथ साथ मसूडों को भी स्वस्थ रखता है।
  • गाजर के ज्यूस में कैंसर से लडऩे का गुण होता है। इसमें केरोटेनोइड नाम का एक खास तत्व होता है जिसे प्रोस्टेट, कोलोन, और स्तन कैंसर से लडऩे में बहुत ही कारगर समझा जाता है।
  • गाजर का ज्यूस शरीर में प्रोटीन की कमी को भी पूरा करने के साथ साथ शरीर को पर्याप्त मात्रा में केल्सियम भी प्रदान करके हड्डियों को मजबूती देता है।
  • गाजर का ज्यूस लीवर को साफ करता है। शरीर में पैदा होने वाले विभिन्न तरह के जहर गाजर के ज्यूस के उपयोग से बाहर निकल जाते हैं। गाजर का ज्यूस लीवर को ताकत देकर उसकी काम करने की क्षमता बढ़ाता है। गाजर का ज्यूस वजन कम करने में भी मदद करता है।
  • गाजर का ज्यूस बच्चे के गर्भावस्था के लिए खास तौर पर लाभकारी है। इसके उपयोग से बच्चे और मां दोनों के स्वास्थ्य में सुधार आता है।
  • गाजर के ज्यूस से मां के दूध की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
  • गाजर का ज्यूस गर्भ में पल रहे बच्चे को इन्फेक्शंस से बचाए रखता है।
  • गाजर का ज्यूस वजन करने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए बहुत कारगर है क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है। कम कैलोरी के कारण यह बहुत अच्छा हेल्दी ड्रिंक है। गाजर का ज्यूस अपने खास गुणों के कारण लगभग सभी डाइट प्लान का हिस्सा बनता है। 

Saturday 17 January 2015

चारोली त्वचा को चमकाए, खूबसूरत बनाए


चारोली का उपयोग अधिकतर मिठाई में जैसे हलवा, लड्डू, खीर, पाक आदि में सूखे मेवों के रूप में किया जाता है। इसका शरीर की सुंदरता कायम रखने में भी उपयोग किया जाता है। पेश है कुछ नुस्खे-

मुंहासे

नारंगी और चारोली के छिलकों को दूध के साथ पीस कर इसका लेप तैयार कर लें और चेहरे पर लगाए। इसे अच्छी तरह सूखने दें और फिर खूब मसल कर चेहरे को धो लें। इससे चेहरे के मुंहासे गायब हो जाएंगे। अगर एक हफ्ते तक प्रयोग के बाद भी असर न दिखाई दे तो लाभ होने तक इसका प्रयोग जारी रखें।

गीली खुजली 

अगर आप गीली खुजली की बीमारी से पीडि़त हैं तो 10 ग्राम सुहागा पिसा हुआ, 100 ग्राम चारोली, 10 ग्राम गुलाब जल इन तीनों को साथ में पीसकर इसका पतला लेप तैयार करें और खुजली वाले सभी स्थानों पर लगाते रहें। ऐसा करीबन 4-5 दिन करें। इससे खुजली में काफी आराम मिलेगा व आप ठीक हो जाएंगे।

चमकती त्वचा

चारोली को गुलाब जल के साथ सिलबट्टे पर महीन पीस कर लेप तैयार कर चेहरे पर लगाएं। लेप जब सूखने लगे तब उसे अच्छी तरह मसलें और बाद में चेहरा धो लें। इससे आपका चेहरा चिकना, सुंदर और चमकदार हो जाएगा। इसे एक सप्ताह तक हर रोज प्रयोग में लाए। बाद में सप्ताह में दो बार लगाते रहें। इससे आपका चेहरा लगेगा हमेशा चमकदार।

शीत पित्ती

शरीर पर शीत पित्ती के ददोड़े या फुंसियां होने पर दिन में एक बार 20 ग्राम चिरौंजी को खूब चबा कर खाएं। साथ ही दूध में चारोली को पीसकर इसका लेप करें। इससे बहुत फायदा होगा। यह नुस्खा शीत पित्ती में बहुत उपयोगी है।

Thursday 15 January 2015

मकर संक्रांति - एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण


भारत पर्वों एवं त्योहारों का देश है। यहाँ कोई भी महीना ऐसा नहीं हैं, जिसमें कोई न कोई त्यौहार न पड़ता हो, इसीलिए अपने देश में यह उक्ति प्रसिद्ध है कि 'सदा दीवाली साल भर, सातों बार त्यौहारÓ। इन्हीं त्यौहारों में मकर संक्रांति भी है, जिसकी अपनी एक अलग ही विशेषता है एवं वैज्ञानिक आधार है।
हम लोगों में से बहुत कम लोग जानते है कि मकर संक्रांति का पर्व क्यों मनाया जाता है और वह भी प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही क्यों? हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इन ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है। हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है। यहाँ स्थान परिवर्तन से तात्पर्य पृथ्वी का अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण से है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर भ्रमण के कारण दिन-रात होते है। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है वहाँ दिन होता है एवं जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता है, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है।
किंतु पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएँ होती है जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के सहारे ही गणना करके वर्ष और मास आदि की गणना की जाती है। इस काल गणना में एक गणना 'अयनÓ के संबंध में भी की जाती है। इस क्रम में सूर्य की स्थिति भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है।

संक्रमणकाल और मकर संक्रांति

इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहा जाता है। चूँकि 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, अत: मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही मनायी जाती है। चूँकि हमारी पृथ्वी का अधिकांश भाग भूमध्य रेखा के उत्तर में यानी उत्तरी गोलार्द्ध में ही आता है, अत: मकर संक्रांति को ही विशेष महत्व दिया गया।
भारतीय ज्योतिष पद्धति में मकर राशि का प्रतीक घडिय़ाल को माना गया है जिसका सिर एक हिरण जैसा होता है, किंतु पाश्चात्य ज्योतिषी मकर राशि का प्रतीक बकरे को मानते हैं। हिंदू धर्म में मकर (घडिय़ाल) को एक पवित्र पशु माना जाता है।
चूँकि हिंदुओं में अधिकांश देवताओं का पदार्पण उत्तरी गोलार्द्ध में ही हुआ है, इसलिए सूर्य की उत्तरायण स्थिति को ये लोग शुभ मानते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन में वृद्धि होती है और रात का समय कम हो जाता है। इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है और अंधकार में कमी होती है। चूँकि सूर्य ऊर्जा का स्रोत है, अत: इस दिन से दिन में वृद्धि हो जाती है। यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने की व्यवस्था हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा की गई है।

प्रगति का पर्व

गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी सूर्य के उत्तरायण का महत्व स्पष्ट किया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि 'हे भरतश्रेष्ठ! ऐसे लोग जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया हो, अग्निमय ज्योति देवता के प्रभाव से जब छह माह सूर्य उत्तरायण होता है, दिन के प्रकाश में अपना शरीर त्यागते हैं, पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता है। जो योगी रात के अंधेरे में, कृष्ण पक्ष में, धूम्र देवता के प्रभाव से दक्षिणायन में अपने शरीर का त्याग करते हैं, वे चंद्रलोक में जाकर पुन: जन्म लेते हैं। वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोडऩेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।
सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है और सूर्य की यह उत्तरायण स्थिति चूँकि मकर संक्रांति से ही प्रारंभ होती है, यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने का प्रावधान हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया और इसे प्रगति तथा ओजस्विता का पर्व माना गया जो कि सूर्योत्सव का द्योतक है।

Wednesday 14 January 2015

तैलीय बालों को भी लहराएं


बालों में तेल लगाकर चिपकू बनना बहुत ही खराब लगता है। हम बाहर जाने से पहले बाल धोकर तेल हटाना नहीं भूलते लेकिन तब क्या जब बाल अपने आप ही तैलीय हो जाएं। क्या आपने कभी महसूस किया कि बाल धोने के एक दिन के बाद ही आपके बाल चिपके हुए लगते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे थोड़ा तेल डाल लिया हो। ध्यान दीजिए हो सकता है कि आपके बाल ऑइली हैं।
अगर आपके बाल साधारण तौर पर घने हैं पर फिर भी चिपके से लगते हैं तो आपके बाल निश्चित तौर पर ऑइली हैं। बालों की यह किस्म काफी झुझंला देने वाली होती है क्योंकि इनके साथ बालों की अधिकतर स्टाइल सही लुक नहीं देतीं। ऑइली बालों की एक और गंभीर समस्या यह है कि इनसे बालों में और त्वचा पर कई तरह की दिक्कतें पैदा हो जाती हैं। सिर की त्वचा पर होने वाली रुसी के लिए ऑइली बाल खासतौर पर जिम्मेदार हैं इसके अलावा चेहरे पर मुंहासों होने में पर भी ऑइली बालों की भूमिका को नजरअंदाज नही किया जा सकता। बालों के विशेषज्ञों के अनुसार ऑइली बाल की सही देखभाल न करने से स्थायी समस्याएं पैदा हो सकती हैं और यहां तक की बाल झडऩा भी शुरु हो सकता है। अत: अगर आप निश्चित तौर पर जानते हैं कि आपके बाल तैलीय हैं तो अभी से आवश्यक कदम उठाइए।
पहला कदम है कि यह पक्का कर लीजिए कि आपके बाल तैलीय हैं। दूसरे कदम के अनुसार आपको यह पता लगाना है कि आखिर आपके बाल तैलीय किस वजह से हैं।
  • तैलीय बाल असल में सिर की तैलीय त्वचा की वजह से होते हैं। सिर की त्वचा में सिबेशियस ग्लैंड्स होते हैं जो सिबम नाम के पदार्थ को सिर की त्वचा में छोड़ते हैं। य़ह सिबम ही बालों की प्राकृतिक नमी को बचाए रखता है पर जब त्वचा में सिबम की मात्रा ज्यादा हो जाती है, यह बालों के द्वारा सोख लिया जाता है और इससे बाल ऑइली हो जाते हैं।
  • तैलीय या ऑइली बालों का दूसरा कारण होर्मोंस होते हैं। आमतौर पर हॉर्मोंस अनियंत्रित हो जाते हैं गर्भावस्था में और बालपन से किशोरावस्था में कदम रखने पर, तब सिबम का स्त्राव अधिक मात्रा में होने लगता है।
  • विभिन्न प्रकार के बीमारियां भी सिबम के स्त्राव को बढ़ा सकतीं हैं।
  • आप यकीन करें या न करें, पर बालों को बहुत ज्यादा बार कंघी करने से भी यह तैलीय हो जाते हैं। अजीब लगता है ना। लेकिन हर बार जब आप बाल कंघी करते हैं, यह सिर की त्वचा से सिबम ऑइल को बाहर निकालता है और इसे पूरे सिर में फैला देता है।
    कुछ लोगों में बाल जेनेटिकली ऑइली होते है क्योंकि उनके माता पिता या घर के अन्य किसी सदस्य के बाल भी ऑइली होते हैं।
बाल तैलीय होने की वजह चिंता, खानपान, तैलीय खाने की अधिकता, पानी कम पीना, हॉर्मोंस में बदलाव लाने वाली दवाइयां, मासिक चक्र में बदलाव, बर्थ कंट्रोल दवाइयां,और पैन किलर्स भी जिम्मेदार हो सकते हैं। 
अब जब आपने पता लगा ही लिया है कि आपके बाल ऑइली हैं और किस वजह से हैं तो फिर समय है बालों की सही देखभाल करने का। आइए देखते हैं कुछ बहुत ही आसान से उपाय मनचाहे बाल पाने के लिए।
    सबसे पहले आप को अपनी डाइट में बदलाव लाना होगा और इसमें फलों और सब्जियों की मात्रा बढ़ाना है। आपको पानी की मात्रा को बढ़ाकर आठ से दस ग्लास प्रतिदिन करनी होगी।
    आपके बालों की सफाई के लिए नियमित तौर पर शैम्पू का इस्तेमाल अति आवश्यक है। अगर आपको शेम्पू करना पंसद नहीं तब भी एक हफ्ते में तीन बार बालों को जरूर धो लीजिए। आपको खास तैलीय बालों के लिए शैम्पू का चुनाव करना होगा जिसमें श्चद्ध बेलेंस सही मात्रा में हो।
  • आपको बालों में किसी भी प्रकार का तेल लगाने की आवश्यकता नहीं है अगर आपके बाल तैलीय  हैं। हकीकत यह है कि बालों में से निकलने वाला तेल प्राकृतिक होता है और आपके बालों के लिए लाभदायक होता है। आपको सिर्फ बालों की सही देखभाल और इस तेल को नियंत्रित करना है। बालों में कभी-कभी गुनगुना बादाम तेल लगाने की जरूरत है क्योंकि यह कम चिपचिपा होने के साथ-साथ बालों को भरपूर मात्रा में पोषण प्रदान करता है। इसमें आप नींबू के ज्यूस को मिला सकते हैं।
  • बीयर से बालों को धोना भी लाभदायक है। आप इसे बालों पर सीधे ही इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • अगर आपके पास शैम्पू करने का समय नहीं है तो आप बालों पर कॉर्न स्टॉर्च भी इस्तेमाल कर सकते हैं। कॉर्न स्टॉर्च का इस्तेमाल सूप और पकोडा बनाते वक्त किया जाता है। यह बाजार में किराने की दुकान पर मिल जाता है। आप इसे बालों और सिर की त्वचा पर सीधे इस्तेमाल करें और फिर अच्छे से धो दें। 
  • आप मेंहदी के इस्तेमाल से भी ऑइली बालों की देखभाल कर सकते हैं। मेंहदी से बालों का अतिरिक्त तेल निकल जाता है।
  • अगर आपको एक्सरसाइज़ करने से पसीना आता है तो शैम्पू करके इस गंदगी को निकाल दीजिए।
  • कुछ लोगों में बालों को हमेशा बांधे रखने की आदत होती है। बालों को कस कर बांधने से बालों की जड़ों पर जोर पड़ता है और इससे बाल कमजोर होने के साथ साथ, तेल का स्त्राव भी बढ़ जाता है। अत: कभी-कभी बालों को खुला छोड़ देना चाहिए।
यह कुछ आसान उपाय हैं जिनसे आपको ऑइली बालों से छुटकारा मिल सकता है। घने और स्वस्थ बाल खूबसूरत व्यक्तित्व के लिए अति आवश्यक हैं। अपनाइए यह उपाय और पाइए मनचाहे लहराते बाल हर वक्त।

Tuesday 13 January 2015

बालों में मेहंदी कब और कैसे लगाएं


बालों में सफेदी आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। लेकिन उम्र से पहले यदि बाल सफेद होने लगते हैं तो इसे एक समस्या मानना चाहिए। असमय सफेदी के कई कारण हो सकते हैं।
शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी, स्त्रियों में मुख्य रूप से रक्तल्पता, कोई बीमारी जो लंबे समय तक रही हो, कुछ ऐलोपैथी दवाइयां भी असमय सफेदी का कारण हो सकती हैं।
प्राय: लोग असमय सफेदी की स्थिति में बालों में मेहंदी लगाते हैं। मेहंदी कौन-सी लें एवं इसमें कौन सी जड़ी-बूटियां डालें, इस बारे में कोई जानकारी नहीं होती। मेहंदी का मिश्रण यदि संतुलित न हो तो बालों में रुखापन आ सकता है अथवा सफेदी बढ़ भी सकती है।
अक्सर लोग विभिन्न जड़ी बूटियां उचित मात्रा का ध्यान रखे बिना अंदाज में डाल देते हैं। यह भी याद रखना जरूरी है कि जो जड़ी-बूटियां बाजार से ली जा रही हैं, वे अधिक पुरानी न हों। जड़ी-बूटियों की भी एक्सपायरी डेट होती है लेकिन अभी हमारे देश में इस दिशा में अधिक शोध नहीं हुए हैं। बाजार में किराने की दुकानों में जड़ी-बूटियां कब से हैं इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। इसी तरह घर में भी अधिक समय तक इन्हें नहीं रखा जा सकता। अक्सर बाज़ार में मिलने वाली काली मेंहदी को लोग सुरक्षित मान लेते हैं। यह हमेशा सुरक्षित नहीं होती क्योंकि निर्माता अक्सर इसमें घातक रसायन मिलाते हैं।

टिप्स

  • यदि आप बालों में मेजेंटा रंग देखना चाहते हैं, तो गुड़हल के फूल क्रश करके डालें। 
  • सर्दियों में मेहंदी लगाएं, तो मेहंदी पेस्ट में कुछ लौंग डाल दें। यह ठंड से बचाएंगी।
  • ठंड से ज्यादा परेशानी है, तो आप मेहंदी में तेल, चाय पानी या कॉफी जरूर मिक्स करें। सूखा आंवला, शलजम जूस, दालचीनी, अखरोट, कॉफी कुछ ऐसे तत्व हैं, जिसे आप मेहंदी में मिक्स कर  सकते हैं।
  • बालों में मेहंदी लगाने से पहले उसमें एक कपूर और एक चम्मच मेथी का पावडर मिला लें। ये बालों को असमय सफेद होने से बचाएंगे।
  • दो चम्मच संतरे के रस में दो चम्मच मेहंदी पाउडर मिलाएं और शैंपू करने के बाद बालों पर लगाएं तथा दस मिनट बाद धो दें।
  • बालों को रंगने के लिए अगर मेहंदी का इस्तेमाल कर रही हैं तो उसमें दो चम्मच चाय का पानी मिला लें। बालों का रंग निखर जाएगा।
  • अगर आपको मेहंदी का इस्तेमाल करने के बाद भी बाल भूरे नहीं काले ही चाहिए तो काली मेहंदी लगाएं या कोई भी हेयर डाई लगाने के बाद मेहंदी के पानी का इस्तेमाल बतौर कंडीशनर करें।
  • अगर आप लंबी बीमारी से उठी हैं और बाल बेतहाशा झड़ रहे हैं तो मेहंदी को गर्म पानी में घोल कर हर दो-तीन दिन में बालों की जड़ों में लगाएं। बालों का झडऩा कम हो जाएगा।

Monday 12 January 2015

जानें दर्द प्रबंधन के बारे में


हर दर्द का कोई न कोई कारण जरूर होता है। यह कारण शारीरिक और मानसिक दोनों हो सकता है। संक्रमण, चोट, सूजन, रक्त संचरण में बाधा, जलन और तनाव सभी अपने-अपने स्तर पर शरीर के विभिन्न हिस्सों पर अपना प्रभाव डालते हैं, जो दर्द का कारण बनते हैं। दर्द के शारीरिक लक्षण हैं - उल्टी होना, चक्कर आना, कमजोरी महसूस होना, उनींदा महसूस होना आदि। भावनात्मक स्तर पर यह दर्द क्रोध, अवसाद, मूड बदलने या चिड़चिड़ेपन के रूप में देखा जा सकता है। दर्द वैसे तो कई प्रकार का होता है लेकिन ऊपरी तौर पर उसे दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।

दर्द के प्रकार

स्थायी दर्द : डॉक्टरी भाषा में इसे क्रॉनिक पेन कहते हैं, जो समय के साथ बढ़ता जाता है। यह दर्द अधिक समय तक बना रहता है। यह  हल्का या तीव्र हो सकता है। इसका कारण कोई लंबी बीमारी भी हो सकती है।
अस्थायी दर्द : डॉक्टरी भाषा में इसे एक्यूट पेन कहा जाता है। यह तुरंत और थोड़े समय के लिए होता है। यह किसी चोट, बीमारी, सूजन या ऊतकों को चोट लगने के कारण होता है। जब घाव भर जाता है, तब दर्द भी चला जाता है। इसे आसानी से पहचान कर उपचार किया जा सकता है।

कहां-कहां दर्द

शरीर के हर हिस्से में होने वाले दर्द का कारण और अहसास एक दूसरे से अलग हो सकता है। आइये जानते हैं कि किस-किस हिस्से में दर्द किस वजह से हो सकता है।

दिल की धमनियों का दर्द

दिल की धमनियों के दर्द को पेरिफेरल वैस्कुलर डिजीज कहा जाता है। दिल से जुडऩे वाले शरीर के आंतरिक अंग और मस्तिष्क को खून पहुंचाने वाली धमनियों में खून का संचरण बाधित होने से दर्द होता है। दिल में ही नहीं, शरीर के किसी भी हिस्से में धमनियां अवरुद्ध होने पर दिल का दौरा पड़ सकता है।

न्यूरोपैथिक पेन

यह दर्द तंत्रिकाओं के नष्ट होने से होता है। तंत्रिकाएं किसी बीमारी जैसे मधुमेह, स्ट्रोक या एचआईवी के संक्रमण से नष्ट हो सकती हैं। कीमोथेरेपी से भी तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं। तंत्रिकाओं के नष्ट होने से जो दर्द होता है, वह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है, जिसमें मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी पर असर होता है। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को संकेत भेजने वाली पेरिफेरल तंत्रिकाओं के नष्ट होने से भी होता है।

रेफर्ड पेन

इसे रिफ्लेक्टिव पेन भी कहा जाता है। जब दर्द चोट वाली जगह के पास या उससे दूर होता है तो इसे रेफर्ड पेन कहा जाता है। जैसे, जब एक व्यक्ति को हार्ट अटैक होता है, तब प्रभावित क्षेत्र जरूर हृदय होता है, पर दर्द छाती की बजाए कंधों और गर्दन के पास भी होता है।

छाती में दर्द

हृदय संबंधी समस्याओं के अलावा छाती में दर्द के कुछ और संभावित कारण भी हो सकते हैं। यह आपके फेफड़ों में संक्रमण, इसोफैगस, मांसपेशियों, पसलियों या तंत्रिकाओं की किसी समस्या के कारण हो सकता है। आप गर्दन के निचले हिस्से से लेकर पेट के ऊपरी हिस्से तक कहीं भी छाती के दर्द को अनुभव कर सकते हैं।

साइकोजेनिक पेन

अक्सर दर्द की उत्पत्ति तो ऊतकों के नष्ट होने या तंत्रिकाओं के क्षतिग्रस्त होने पर होती है, पर इसके कारण जो दर्द होता है, वह भय, अवसाद, तनाव या उत्तेजना के कारण बढ़ जाता है। कुछ मानसिक रोगों में लोग ठीक तरह से नहीं खाते और पूरी नींद नहीं ले पाते, जिससे विभिन्न हिस्सों में दर्द होता है।

टेल बोन पेन

गर्दन से कूल्हे को जोडऩे वाले मेरूदंड के निचले हिस्से में होने वाले दर्द को टेल बोन पेन कहते हैं। शारीरिक रूप से कमजोर लोगों में यह दर्द अधिक देखा जाता है। कई बार एक ही जगह बैठे रहने पर भी टेल बोन की समस्या देखी गई है, जबकि कई में जन्मजात विकृति इसका कारण है।

सिरदर्द

सिरदर्द दुनिया की सबसे आम बीमारी है। इस रोग की उत्पत्ति का वास्तविक कारण स्पष्ट नहीं है, फिर भी तनाव, अवसाद, एल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन, कब्ज, थकान, शोरगुल या तंत्रिका तंत्र की गड़बड़ी, ब्रेन ट्यूमर आदि के कारण यह हो सकता है। सिरदर्द की समस्या पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक होती है। दूसरा सबसे ज्यादा मिलने वाला सिरदर्द माइग्रेन है।

साइकोसोमैटिक पेन

कई बार हमें कोई शारीरिक समस्या नहीं होती, तब भी हमारे शरीर के किसी हिस्से में दर्द होने लगता है। इसे साइकोसोमैटिक पेन कहते हैं।

जोड़ों का दर्द

जोड़ों का दर्द बोन फ्लूइड में परिवर्तन आ जाने, चोट या अंदर किसी बीमारी के से हो सकता है। उम्र बढऩे के साथ जोड़ों के बीच के कार्टिलेज कुशन को लचीला और चिकना बनाए रखने वाला लुब्रीकेंट कम होने लगता है।

कमर दर्द

हमारी रीढ़ की हड्डी में 32 वर्टिब्राज़ होती हैं, जिनमें से 22 गति करती हैं। जब इनकी गति ठीक नहीं होती तो कई सारी समस्याएं हो जाती हैं। रीढ़ की हड्डी के अलावा हमारी कमर की बनावट में कार्टिलेज (डिस्क), जोड़, मांसपेशियां, लिगामेंट आदि शामिल होते हैं।

दर्द के लिए उपचार

दर्द के कारण का पता लगा कर ही उसका उपचार किया जाता है, जैसे संक्रमण है तो एंटीबायोटिक्स लेने से दर्द चला जाता है। चोट लगी है तो दर्द निवारक दवाएं लेना अच्छा रहता है। कैंसर, हड्डी टूटने या जलने आदि स्थितियों में दूसरी दवाओं के साथ दर्द निवारक दवाएं भी दी जाती हैं। साइकोसोमैटिक पेन को मनोचिकित्सकीय तरीके से ठीक करने का प्रयास किया जाता है। शरीर की अंदरूनी समस्याओं के कारण उपजे दर्द का पता लगाने के लिए टेस्ट, एक्स रे, सोनोग्राफी आदि का सहारा लिया जाता है और उसी के अनुसार उपचार सुझाया जाता है। वैसे आप स्थाई दर्द के लिए अपने स्तर पर कोशिशें कर सकते हैं। जीवनशैली में बदलाव लाएं। पोषक भोजन खाएं, विशेषकर ऐसा भोजन, जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो। शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से एक्सरसाइज और योग करें। शरीर का पॉश्चर ठीक रखें। गलत पॉश्चर कमर दर्द का प्रमुख कारण है। शरीर का भार कम रखें और कमर के आसपास चर्बी न बढऩे दें।

Sunday 11 January 2015

स्तन की हर गठान कैंसर नहीं


समय के परिवर्तन के साथ-साथ जहां महिलाओं के रहन-सहन में एवं विचारों में परिवर्तन आया है, वही खुद के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का विकास यानि हेल्थ अवेयरनेस भी आई है।
सृष्टि के निर्माण के साथ ही नारी सौन्दर्य को इश्वर की सर्वोत्तम कृतियों में से एक माना गया है। गृहस्थी की जिम्मेदारियों व समय की मांग को देखते हुए स्त्रियों ने जागरूकता तो अपनाई है, किन्तु कई बार सही मार्गदर्शन के अभाव में स्तन व उससे संबंधित बीमारियों व निदान के उपायों की अवहेलना भी की है।
नारी वक्ष केवल सौन्दर्य का ही प्रतीक नहीं है बल्कि मां होने के गौरव भी उसने नारी को दिखाया है। स्तन व उससे जुड़ी बीमारियों के प्रति परेशान होने शर्मिन्दा होने व डरने की बजाय अगर आप उसके प्रति जागरूक हो जावे - जैसे कि आप अपने पूरे शरीर के प्रति है, तो उससे संबंधित रोगों को लाइलाज होने से पहले रोकथाम कर सकते हैं।
स्तनों की जांच के लिए नहाते समय या कपड़े बदलते समय उसमें होने वाले किसी भी परिवर्तन को देखा या महसूस किया जा सकता है, जिसे आप ़10-15 दिन के अंतर से कर सकते है।
आपको किन परिवर्तनों को देखना है -

लक्षण

बाहारी आकार, या दोनों हाथ उपर करने पर किसी गठान का उभर आना ।
स्तन की चमड़ी का अंदर की तरफ खींच जाना या उसका आकार संतरे के छिलके की तरह खुरदरा होना ।

अहसास

छूने पर गठान का महसूस होना या निप्पल के पास किसी गठान का उभरना या दर्द होना ।

रिसाव

दूध के अलावा निप्पल से होने वाल डिस्चार्ज जो ब्लड भी हो सकता है, पस हो सकता है, सफेद पानी सा रिसाव भी हो सकता है। उस पर पपड़ी जमी हो सकती है या एक्जिमा जैसा भी हो सकता है।
अब क्या करना चाहिए अगर आपने कोई परिवर्तन नोट किया है तो डॉक्टर की सहायता लें।
पहले एक समय था जब महिला शल्य चिकित्सक नहीं होने की वजह से या तो बीमारी को छुपा लिया जाता था या फिर गायनकोलाजिस्ट को दिखाया जाता था, परन्तु अब महिला सर्जन डॉक्टर उपलब्ध है। स्तन में होने वाली हर गांठ कैंसर नहीं होती है यह बात जितनी महत्वपूर्ण उतना ही उसका बायोप्सी से कनफर्म करना होता है।
ब्रेस्ट कैंसर से संबंधित कुछ तथ्य है जो मैं आपके साथ बांटना चाहती हूं- जैसे
यह पुरूषों में भी होता है पर उसका अनुपात 100 में 1 प्रतिशत है।
महिलाओं में होने वाला यह सबसे कॉमन कैंसर है।
अमेरिका में इसका इनसीडेंस सबसे ज्यादा है।
40 वर्ष से 60 वर्ष के बीच 100 में से 16 प्रतिशत महिलाओं को स्तन से संभावित कुछ न कुछ बीमारी होती है जिसमें 40 प्रतिशत महिलाएं स्तन में गठान से पीडि़त होती है।
40 वर्ष के ऊपर की महिला अगर स्तन में गठान के साथ आती है तो उसको पूरी तरह से जांच करवाना चाहिए।

कैंसर क्या है

असामान्य तरीके से स्तन में कोशिकाओं के बढऩे से होने वाली गठान या परिवर्तन कैंसर हो सकता है। इसका कोई ठोस सबूत नहीं है पर हां बहुत सारे कारण जरूर है जो इसके होने को खतरे को बढ़ा देते हैं। जैसे
  • बढ़ती उम्र के साथ इसकी रिस्क भी बढ़ती है।
  • परिवार में कोई स्तर कैंसर या अन्य कैंसर से पीडि़त है।
  • अगर उसको माहवारी जल्दी शुरू हुई है और बंद देरी से हुई है तो ऐसी महिलाओं में इसका खतरा बढ़ जाता है।
  • मोटापा होना हेवी ब्रेस्ट होने से भी रिस्क बढ़ती है।
  • ब्रेस्ट फिडिंग ना करवाना ये भी कारण हो सकता है।
  • फेमेली प्लानिंग के लिए ली जाने वाली हार्मोन की गोलियां ओरल पिल्स कानट्रेस्पटिव पिल्स।
  • पुरूषों से बराबरी और आधुनिकता के चलते आज कल महिलाओं में शराब के सेवन का चलन बढ़ गया है यह भी एक रिस्क फेक्टर है।
नियमित व्यायाम से कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है -
इसलिए यदि स्तन में गठान है या चमड़ी में बदलाव आया है या निप्पल से कुछ तरल पदार्थ निकल रहा है तो उसको अनदेखा न कर तुरंत चिकित्सक की सलाह लेना जरूरी है।
कैंसर रोगी की कन्फर्मेशन हम ब्रेस्ट क्लीनिसीयन की मदद से सोनोमेमा, मेमोग्राफी बायोप्सी से कर सकते है।
कुछ स्तन की बीमारियों जो कैंसर तो नहीं होती  पर कैंसर की रिस्क को बढ़ा देती है अत: उस पर भी ध्यान देना आश्यक है।
स्तर कैंसर कई तरह के होते है और उसके फैलाव और बचाव के कारण भी कैंसर के टाइप पर निर्भर करता है। अगर लो सीवियरिटी का रहेगा तो धीरे-धीरे बढ़ेगा और ट्रीटमेंट के बाद उसका परिणाम भी अच्छा होगा। इसके अलावा कैंसर की स्टेज पर भी इसका इलाज और आगे का परिणाम निर्भर करता है। ये दोनों ही बाते बायोप्सी से कन्फर्म होती है। कुछ हार्मोन के माक्र्स भी होते है जो इसके आने वाले परिणाम को बताते हैं। इलाज के लिए सर्जरी, कीमोथैरपी एवं रेडियोथ्रेपी तीनों का ही महत्वपूर्ण रोल होता है। अत: स्तन में पायी जाने वाली हर गठान कैंसर नहीं होती है और स्तन कैंसर का इलाज संभव है।

Friday 9 January 2015

गुर्दे की पथरी का होम्योपैथी प्रहरी


डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार उनके पास मरीज तब आता है जब वह पथरी निकालने के सकल प्रयास जैसे आपरेशन, लेजर, लिथोट्रिप्सी तथा देशी प्रयास भी आजमा चुका होता है। कई मरीज तो तब आते हैं जब पथरी के कारण एक किडनी का आपरेशन हो चुका होता है और दूसरी किडनी में पुन: पथरी बन चुकी होती है। डॉ. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी ही एक मात्र ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जो पथरी को शरीर में बार-बार बनने से रोक सकती है। उनके पास आने वाले मरीजों में छोटे बच्चों उम्र लगभग ३-५ साल से लेकर बुजुर्ग लगभग ६५-७० साल के मरीज अपनी पथरी की बिमारी लेकर आते हैं। जिनकी सोनोग्राफी रिपोर्ट में पथरी का आकार लगभग ५ एमएम से लेकर ४५-५० एमएम तक भी देखी गई है। परन्तु जब पथरी का आकार ८ या १० से ज्यादा हो जाता है तो दवाइयों से निकलना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।
डॉ. द्विवेदी बताते हैं कि उनके द्वारा दी जाने वाली दवाइयों से कई मरीजों की २-३ एमएम की पथरी २-३ दिन में ही निकल गई तथा एक महिला मरीज जिसको ११ एमएम की पथरी थी मात्र २१ दिन की होम्योपैथी दवा लेने से मूत्र मार्ग से निकल गई।
छोटे बच्चों को भी पथरी बन जाती है, जिन्हें कुछ माह तक होम्योपैथी दवाइयां देने से पथरी निकल भी जाती है तथा बार-बार पथरी का बनना भी बंद हो जाता है।
पथरी कई प्रकार की हो सकती है-
कैल्शियम ओक्सलेट
यूरिक एसिड और यूरेट स्टोन
सिस्टिन स्टोन
फास्फेट स्टोन
मिक्स्ड स्टोन इत्यादि
अलग-अलग प्रकार में अलग-अलग होम्योपैथिक दवाइयां निर्देशित हैं।
मरीज के लक्षण, पथरी के आकार तथा सोनोग्राफी रिपोर्ट के आधार पर यदि कुछ समय तक होम्योपैथिक दवाइयों का सेवन किया जाए तो पथरी निकल भी जाएगी और उसका बार-बार शरीर में बनना भी बंद हो सकेगा।

Thursday 8 January 2015

मूंगफली निकाल देगी आपकी पथरी


सर्दियों के मौसम में मूंगफली खाने का मजा ही अलग होता है। ठंडी हवा के बीच दोस्तों के साथ मूंगफली एक अच्छा टाइमपास है। मूंगफली केवल मुंह का जायका ही नहीं बढ़ाती है, बल्कि यह आपकी सेहत के लिए भी फायदेमंद है। यह बात कई रिसर्च से भी साबित हो चुकी है।

बढ़ता वजन करें कम

मूंगफली में फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए खाने से पहले मूंगफली खाने से पेट भरा हुआ रहा है और आप कम खाना खाते है। इससे खूब एनर्जी मिलती है और मेटाबॉलिक रेट भी बढ़ती है।

बालों का झडऩा

मूंगफली में पाया जाने वाला विटामिन सी बॉडी में कोलेजन बनाता है, जो टिश्यूज को बालों में एक साथ रखता है। यह गंजेपन की समस्या और बालों के झडऩे की समस्या से निजात दिलाती है।

याददाश्त

विटामिन बी से भरपूर मूंगफली याददाश्त तेज करने का भी काम करती है। इससे दिमाग तेज होता है और मैमोरी बढ़ती है।

तनाव

दिमाग में सेरोटोनिन स्त्राव की कमी के चलते तनाव की समस्या पैदा होने लगती है। मूंगफली में ट्राइपटोफन पाया जाता है जो सेरोटोनिन को रिलीज करने में मदद करता है। जिससे तनाव दूर होता है।
दिल की बीमारियां
आधुनिक लाइफस्टाइल, अनहेल्दी खाने और तनाव के चलते लोगों में दिल संबंधी बीमारियां घर करने लती है। मूंगफली आपके दिल के लिए एक अच्छी दवा है। रोजाना एक मु_ी मूंगफली खाने से दिल की बीमारियां दूर रहती है।

पथरी

एक रिसर्च के मुताबिक हर हफ्ते एक मु_ी मूंगफली खाने से पथरी की जोखिम 25 फीसदी कम हो जाती है। यह अध्ययन 80,000 महिलाओं पर किया गया था।

कैंसर

मूंगफली शरीर में ट्यूमर बनने से रोकती है। इससे कैंसर जैसी बड़ी बीमारी की जोखिम भी कम हो जाती है।
प्रेगनेंट महिलाओं के लिए
प्रेगनेंट महिलाओं को अक्सर यह समस्या रहती है कि इस दौरान वे क्या खाएं। प्रेग्नेंसी के दौरान मूंगफली खाने से होने वाले बच्चें में एलर्जिक बीमारियां मसलन अस्थमा आदि की जोखिम कम होती है।

ब्लड प्रेशर

अमेरिकन जरनल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रीशिन के अध्ययन के मुताबिक मूंगफली सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। अध्ययन से निष्कर्ष निकला कि रोजाना मूंगफली खाने से ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल कम होता है।

Wednesday 7 January 2015

पथरी से बचना है? खूब पिएं पानी


गर्मी के दिनों में पथरी का खतरा बढ़ जाता है और इस बीमारी से बचना है तो दिन में कम से कम तीन लीटर पानी पिएं। गर्मी का मौसम शुरू होते ही पथरी (स्टोन) के मरीजों की संख्या बढऩे लगती है। इसकी वजह शरीर में पानी की कमी है। पथरी की बीमारी से बचना है तो पूरी गर्मी शरीर में पानी की मात्रा बनाये रखें। दिन में कम से कम तीन लीटर पानी पियें। शरीर में पानी की कमी होने से गुर्दे में पानी कम छनता है। पानी कम छनने से शरीर में मौजूद कैल्शियम, यूरिक एसिड और दूसरे पथरी बनाने वाले तत्व गुर्दे में फंस जाते हैं, जो बाद में धीरे-धीरे पथरी की शक्ल ले लेते हैं। इसके लिए जरूरी है कि गर्मी भर अपने शरीर में पानी की मात्रा कम न होने दें। इससे गुर्दे स्वस्थ रहेंगे। शरीर में कई प्रकार की पथरियां बनती हैं। इनमें कैल्शियम फास्फेट की पथरी, कैल्शियम आक्जीलेट की पथरी, यूरिक एसिड की पथरी, सिस्टीन की पथरी और ट्रिपल फास्फेट की पथरी आदि हैं।

इनका कम करें सेवन

सब्जियों में टमाटर, पालक और चौलाई में ऑक्जीलेट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। इससे मूत्राशय में पथरी बनती है। फूलगोभी, बैंगन, मशरूम और सीताफल में यूरिक एसिड और प्यूरान तत्व होते हैं। ये भी पथरी के लिए जिम्मेदार हैं।

मांसाहारी भोजन

जैसे मांस, मछली और अंडे में यूरिक एसिड की मात्रा ज्यादा होती है। काजू, चॉकलेट, कोको, चाय और कॉफी में आक्जीलेट की मात्रा ज्यादा होती है। इन सभी की अधिकता से पथरी भी बनती है।

बचाव

रोजाना कम से कम तीन लीटर तक पानी पियें। नमक का सेवन कम करें। नमक कैल्शियम के साथ क्रिया कर स्टोन बनाता है। संतरे और नींबू के रस का सेवन करें। यह शरीर में पीएच की मात्रा बढ़ाते हैं, इनसे पथरी नहीं बनती। अगर गर्म जगहों पर काम करते हैं तो पानी की मात्रा और ज्यादा कर दें क्योंकि शरीर में मौजूद पानी पसीने के रूप में बाहर निकलता रहता है।
रेड मीट जैसे बकरे, भैंसे और सूअर के मांस का सेवन न करें। इनमें यूरिक एसिड की मात्रा ज्यादा होती है। यूरिक एसिड से भी पथरी बनती है। चालीस साल से अधिक उम्र होने पर साल में एक बार किडनी फंक्शन टेस्ट करायें।
पथरी का इलाज दवा और ऑपरेशन, दोनों विधियों से किया जाता है। इलाज पथरी के आकार और स्थिति पर निर्भर करता है। अगर पथरी का आकार 1।5 सेमी तक है और वह यूरेटर या किडनी में है तो इसका लिथोट्रिप्सी विधि से इलाज किया जाता है। इसमें लेजर से पथरी तोड़ दी जाती है और चीरफाड़ नहीं करनी पड़ती। मरीज को भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती।
अगर पथरी का आकार डेढ़ सेमी से बड़ा है तो उसको दूरबीन विधि से ऑपरेशन करके निकाल लिया जाता है, जिसे पीसीएनएल (परक्यूटेनियस नेफ्रो लिथाटमी) विधि कहते हैं। पेशाब की थैली में पथरी है तो उसे लिंग के रास्ते दूरबीन डालकर ऑपरेशन किया जाता है। इसमें भी चीर-फाड़ नहीं करनी पड़ती। इस विधि को यूआरएसएल (यूरिट्रो रिनोस्को पिक लिथियोट्रिप्सी) विधि कहते हैं।

इनका करें सेवन

नारियल के पानी और बादाम में पोटेशियम और मैग्नीशियम की मात्रा ज्यादा होती है। यह पथरी बनने से रोकता है। सब्जियों में गाजर और केला खनिजों से भरपूर होता है। नींबू में साइट्रिक होता है, जो कैल्शियम और आक्जीलेट को गुर्दे में इक_ा होने से रोकता है। अनन्नास में एंजाइम होते हैं जो फाइब्रिन का विखंडन करते हैं। यह पित्त की थैली में पथरी बनने से रोकता है। जौ और जई में फाइबर होते हैं। यह भी पथरी बनने से रोकते हैं।

Tuesday 6 January 2015

किडनी की पथरी रामबाण दवा कुल्थी


गुर्दे से जुड़ी कई समस्याएं हैं, मसलन गुर्दे में दर्द, मूत्र में जलन या मूत्र का अधिक या कम आना आदि। इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या, जिसके पीडि़तों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वह है किडनी में पथरी।
आयुर्वेद व घरेलू चिकित्सा में किडनी की पथरी में कुलथी को फायदेमंद माना गया है। गुणों की दृष्टि से कुल्थी पथरी एवं शर्करानाशक है। वात एवं कफ का शमन करती है और शरीर में उसका संचय रोकती है। कुल्थी में पथरी का भेदन तथा मूत्रल दोनों गुण होने से यह पथरी बनने की प्रवृत्ति और पुनरावृत्ति रोकती है। इसके अतिरिक्त यह यकृत व पलीहा के दोष में लाभदायक है। मोटापा भी दूर होता है।

 

यूं करें इस्तेमाल

250 ग्राम कुल्थी कंकड़-पत्थर निकाल कर साफ कर लें। रात में तीन लिटर पानी में भिगो दें। सवेरे भीगी हुई कुल्थी उसी पानी सहित धीमी आग पर चार घंटे पकाएं। जब एक लिटर पानी रह जाए (जो काले चनों के सूप की तरह होता है) तब नीचे उतार लें। फिर तीस ग्राम से पचास ग्राम (पाचन शक्ति के अनुसार) देशी घी का उसमें छोंक लगाएं। छोंक में थोड़ा-सा सेंधा नमक, काली मिर्च, जीरा, हल्दी डाल सकते हैं। पथरीनाशक औषधि तैयार है।
प्रयोग विधि: दिन में कम-से-कम एक बार दोपहर के भोजन के स्थान पर यह सारा सूप पी जाएं। 250 ग्राम पानी अवश्य पिएं। एक-दो सप्ताह में गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है, लगातार सेवन करते रहना राहत देता है।
    यदि भोजन के बिना कोई व्यक्ति रह न सके तो सूप के साथ एकाध रोटी लेने में कोई हानि नहीं है।
    गुर्दे में सूजन की स्थिति में जितना पानी पी सकें, पीने से दस दिन में गुर्दे का प्रदाह ठीक होता है।
    यह कमर-दर्द की भी रामबाण दवा है। कुल्थी की दाल साधारण दालों की तरह पका कर रोटी के साथ प्रतिदिन खाने से भी पथरी पेशाब के रास्ते टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है। यह दाल मज्जा (हड्डियों के अंदर की चिकनाई) बढ़ाने वाली है।

पथरी में ये खाएं

कुल्थी के अलावा खीरा, तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, चौलाई का साग, मूली, आंवला, अनन्नास, बथुआ, जौ, मूंग की दाल, गोखरु आदि खाएं। कुल्थी के सेवन के साथ दिन में 6 से 8 गिलास सादा पानी पीना, खासकर गुर्दे की बीमारियों में बहुत हितकारी सिद्ध होता है।

ये न खाएं

पालक, टमाटर, बैंगन, चावल, उड़द, लेसदार पदार्थ, सूखे मेवे, चॉकलेट, चाय, मद्यपान, मांसाहार आदि। मूत्र को रोकना नहीं चाहिए। लगातार एक घंटे से अधिक एक आसन पर न बैठें।

कुल्थी का पानी भी लाभदायक

कुल्थी का पानी विधिवत लेने से गुर्दे और मूत्रशय की पथरी निकल जाती है और नयी पथरी बनना भी रुक जाता है। किसी साफ सूखे, मुलायम कपड़े से कुल्थी के दानों को साफ कर लें।  किसी पॉलीथिन की थैली में डाल कर किसी टिन में या कांच के मर्तबान में सुरक्षित रख लें।
कुल्थी का पानी बनाने की विधि:  किसी कांच के गिलास में 250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुल्थी डाल कर ढक कर रात भर भीगने दें। प्रात: इस पानी को अच्छी तरह मिला कर खाली पेट पी लें। फिर उतना ही नया पानी उसी कुल्थी के गिलास में और डाल दें, जिसे दोपहर में पी लें। दोपहर में कुल्थी का पानी पीने के बाद पुन: उतना ही नया पानी शाम को पीने के लिए डाल दें।
इस प्रकार रात में भिगोई गई कुल्थी का पानी अगले दिन तीन बार सुबह, दोपहर, शाम पीने के बाद उन कुल्थी के दानों को फेंक दें और अगले दिन यही प्रक्रिया अपनाएं। महीने भर इस तरह पानी पीने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी धीरे-धीरे गल कर निकल जाती है।

सहायक उपचार

कुल्थी के पानी के साथ हिमालय ड्रग कंपनी की सिस्टोन की दो गोलियां दिन में 2-3 बार प्रतिदिन लेने से शीघ्र लाभ होता है। कुछ समय तक नियमित सेवन करने से पथरी टूट-टूट कर बाहर निकल जाती है। यह मूत्रमार्ग में पथरी, मूत्र में क्रिस्टल आना, मूत्र में जलन आदि में दी जाती है।

Monday 5 January 2015

किडनी की पथरी गलाने वाली नई दवा


अगर आप गुर्दे की पथरी के दर्द से परेशान हैं तो आप के लिए एक अच्छी खबर है। एक नए अध्ययन के मुताबिक ल्यूकेमिया और मिर्गी के लिए स्वीकृत दवाओं की एक श्रेणी, गुर्दे की पथरी के लिए भी प्रभावी हो सकती है। ये दवाएं स्टोन डिसेटाइलेज इनहिबिटर्स या एचडीएसी इनहिबिटर्स हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि इन दवाओं में से दो दवाएं- वोरिनोस्टेट और ट्रिचोस्टेटिन ए, मूत्र में कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा कम करती हैं। कैल्शियम और मैग्नीशियम दोनों ही गुर्दे की पथरी के मुख्य घटक हैं।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के सेंट लुईस स्थित स्कूल ऑफ मेडिसिन में मेडिसिन साइंस के सहायक प्रोफेसर ने बताया, 'हमें उम्मीद है कि दवाओं की इस श्रेणी से गुर्दे की पथरी गलाई जा सकती है, क्योंकि यह कैल्शियम और मैग्नीशियम कम करने में प्रभावी है और गुर्दे की कोशिकाओं के लिए विशेष है।Ó
शोधकर्ताओं ने एक चूहे पर ल्यूकेमिया में प्रयोग की जाने वाली दवा का प्रयोग किया और बिना किसी दुष्प्रभाव के इसके आश्चर्यजनक प्रभाव देखे। कुछ लोगों में आनुवांशिक तौर पर गुर्दे की पथरी की समस्या होती है और उनके मूत्र में स्वाभाविक तौर पर कैल्शियम ज्यादा होता है।
आमतौर पर डॉक्टर शरीर से पथरी निकालने के लिए ज्यादा पानी पीने की सलाह देते हैं। लेकिन चूहे पर किए गए इस नए अध्ययन में देखा कि वोरिनोस्टेट की छोटी सी खुराक ने मूत्र में 50 फीसदी तक कैल्शियम और 40 फीसदी तक मैग्नीशियम कम कर दिया।
ट्रिचोस्टेटिन के लिए भी ऐसे ही परिणाम देखे गए। शोधकर्ताओं के अनुसार 'अब हम गुर्दे की पथरी के मरीजों पर इन दवाओं का टेस्ट करना चाहते हैं।Ó यह शोध 'जर्नल ऑफ द अमेरिका सोसाइटी ऑफ निफ्रोलॉजीÓ में ऑनलाइन प्रकाशित किया गया।

Saturday 3 January 2015

गुर्दे की पथरी के कुछ प्राकृतिक एवं घरेलू उपाय


गुर्दे की पथरी एक आम बीमारी है जो अक्सर गलत खान पान की वजह से होता है। जरुरत से कम पानी पीने से भी गुर्दे की पथरी का निर्माण होता है।
गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए अक्सर लोग कोई ऐसा समाधान चाहते हैं जिसका कोई कुप्रभाव न हो। ऐसा ही एक उपाय है प्राकृतिक उपाय जो गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत ही कारगर साबित होता है साथ हीं साथ शरीर पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता। गुर्दे की पथरी  दूर करने के कुछ  प्राकृतिक  उपाय-

अनार के  बीज और हार्स ग्राम

अनार मीठे हों या न हों, उनके बीज गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं अहम भूमिका निभाते हैं। एक चम्मच  अनार के बीज  को पीस कर उसका पेस्ट बना लें और फिर दो चम्मच होर्से ग्राम तथा अनार के बीज के पेस्ट को एक कप पानी में एक साथ मिलाकर सूप बना लें। ठंडा होने पर इस सूप का सेवन करें। कुछ दिन लगातार इस सूप का सेवन करने से आपको गुर्दे की पथरी की समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिल जायेगा।

निम्बू का रस एवं जैतून का तेल

जैतून का तेल (ओलिव आयल) एवं निम्बू का रस मिलकर तैयार किया गया मिश्रण गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं कारगर साबित होता है। 60 मिली लिटर  निम्बू के रस में उतनी हीं मात्रा में जैतून का तेल (ओलिव आयल) मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इनके मिश्रण का सेवन करने के बाद भरपूर मात्रा में पानी पीते रहें। इस प्राकृतिक उपचार से बहुत जल्द हीं आपको गुर्दे की पथरी से निजात  मिल जायेगा साथ हीं साथ पथरी से होने वाली पीड़ा से भी आपको मुक्ति मिल जाएगी।

कार्बनिक अजवाइन

जिन लोगों को गुर्दे की पथरी होने का खतरा हो उनके लिए कार्बनिक अजवाइन का नियमित रूप से सेवन करना अनिवार्य है। कार्बनिक अजवाइन के बीज एवं सब्जी, दोनों हीं गुर्दे के लिए टॉनिक का काम करते हैं। ये आपको गुर्दे की पथरी से बचाते हैं और यदि आप इसके शिकार हो गए हैं तो उसे दूर करने में काफी मददगार साबित होते हैं। इसे मसाले के रूप में उपयोग किया जा सकता है अथवा पानी में उबाल कर चाय की तरह पिया जा सकता है।

किडनी बिन्स

किडनी की पथरी यानि गुर्दे की पथरी को दूर करने का किडनी बिन्स बहुत हीं प्रभावकारी प्राकृतिक उपचार है। किडनी बिन्स यानि सेम की फली से गुर्दे की पथरी के उपचार हेतु आप औषधी तौयार कर सकते हैं। सबसे पहले  आप  किडनी बिन्स यानि सेम की फली सेम से अगल कर लें और उन्हें पतले दुकड़ों में तराश/काट  लें। अब इन टुकड़ों का 50-60 ग्राम लें और लगभग 4 लिटर स्वच्छ/शुद्ध पानी में तकरीबन 6 घंटों तक धीमी आंच पर उबालें। तत्पश्चात रस को साफ कपड़े या छलनी से छान लें और तकरीबन 6 घंटे तक ठंडा होने दें। गुर्दे की पथरी के मरीजों को सलाह दी जाती है कि इलाज के पहले दिन वे इसके रस को हर दो घंटे पर पीते रहें। अगले दिनों में भी या अगले हफ्ते में भी जितनी ज्यादा बार इसे पियेंगे उतना हीं ज्यादा फायदा मिलेगा।  तैयार किये जाने के बाद इस रस का असर 24 घंटों के बाद कम होने लगता है इसलिए हमेशा ताजे रस का सेवन करना हीं फायदेमंद होता है।

अंगूर का सेवन करें

अंगूर गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत ही अहम भूमिका निभाता है। अंगूर प्राकृतिक मूत्रवर्धक के रूप में उत्कृष्ट रूप से कार्य करता है क्योंकि इसमें पोटेशियम नमक और पानी भरपूर मात्रा में होते हैं। अंगूर में एलब्यूमिन और सोडियम क्लोराइड बहुत ही कम मात्रा में होता है, इस कारण अंगूर को पथरी के उपचार के लिए फायदेमंद माना जाता है।

विटामिन बी 6 का सेवन

विटामिन बी 6 गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत ही प्रभावकारी साबित होता है। यदि विटामिन बी 6 का सेवन विटामिन बी ग्रूप के अन्य विटामिन के साथ किया जाए, तो गुर्दे की पथरी में कमी आती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि विटामिन बी की 100 से 150 मिलीग्राम की दैनिक खुराक गुर्दे की पथरी की चिकित्सीय उपचार में फायदेमंद हो सकती है। यह विटामिन मष्तिष्क संबंधी विकारों को भी दूर करता है। तुलसी के पत्तों में विटामिन बी पाया जाता है इसलिए तुलसी के पत्तों को प्रतिदिन चबाया करें।

प्याज खाएं

गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए प्याज में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। पके हुए प्याज का रस पीने से गुर्दे की पथरी में राहत मिलती है। आप दो मध्यम आकर के प्याज लेकर उन्हें अच्छी तरह से छील लें। अब एक बर्तन में एक गिलास पानी डालकर दोनों प्याज को मध्यम आंच पर पका लें। जब वे अच्छी तरह से पक जाए तो उन्हें ठंडा होने दें। अब इन्हें ग्राइंडर में डालकर अच्छे ग्राइंड कर लें। अब इस रस को छान लें और इसका तीन दिन तक सेवन करें। इसके सेवन से आपको बहुत जल्दी फायदा मिलेगा।

केला

जिस व्यक्ति को पथरी की समस्या हो उसे खूब केला खाना चाहिए क्योंकि केला विटामिन बी-6 का प्रमुख स्रोत है, जो ऑक्जेलेट क्रिस्टल को बनने से रोकता है व ऑक्जेलिक अम्ल को विखंडित कर देता है। इसके आलावा नारियल पानी का सेवन करें क्योंकि यह प्राकृतिक पोटेशियम युक्त होता है, जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है और इसमें पथरी घुलती है।

करेला

कहने को करेला बहुत कड़वा होता है पर पथरी में यह भी रामबाण साबित होता है। करेले में पथरी न बनने वाले तत्व मैग्नीशियम तथा फॉस्फोरस होते हैं और वह गठिया तथा मधुमेह रोगनाशक है।

चौलाई का साग

पथरी को गलाने के लिये अध उबला चौलाई का साग दिन में थोडी थोडी मात्रा में खाना हितकर होता है, इसके साथ आधा किलो बथुए का साग तीन गिलास पानी में उबाल कर कपडे से छान लें, और बथुये को उसी पानी में अच्छी तरह से निचोड कर जरा सी काली मिर्च जीरा और हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर इसे दिन में चार बार पीना चाहिये, इस प्रकार से गुर्दे के किसी भी प्रकार के दोष और पथरी दोनो के लिए साग बहुत उत्तम माने गये है।

गाजर

गाजर में पायरोफॉस्फेट और पादप अम्ल पाए जाते हैं जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकते हैं। गाजर में पाया जाने वाला केरोटिन पदार्थ मूत्र संस्थान की आंतरिक दीवारों को टूटने-फूटने से बचाता है।

नींबू

इसके अलावा नींबू का रस एवं जैतून का तेल मिलकर तैयार किया गया मिश्रण गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं कारगर साबित होता है। 60 मिली लीटर नींबू के रस में उतनी हीं मात्रा में जैतून का तेल मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इनके मिश्रण का सेवन करने के बाद भरपूर मात्रा में पानी पीते रहें।

जीरे

जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। इसके अलावा तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।

मूली

एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें, फिऱ मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें, उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे, पथरी में लाभ होगा।

प्याज

प्याज में पथरी नाशक तत्व होते हैं। करीब 70 ग्राम प्याज को अच्छी तरह पीसकर या मिक्सर में चलाकर पेस्ट बनालें। इसे कपडे से निचोडकर रस निकालें। सुबह खाली पेट पीते रहने से पथरी छोटे-छोटे टुकडे होकर निकल जाती है।
आपको गुर्दे की पथरी जिन्हें बार-बार हो रही है उन्हें खान-पान में परहेज बरतना चाहिए, ताकि समस्या से बचा जा सकता है। साथ ही एक स्वस्थ व्यक्ति को तो प्रतिदिन 3-5 लीटर पानी पीना चाहिए यदि किसी को एक बार पथरी की समस्या हुई, तो उन्हें यह समस्या बार-बार हो सकती है। अत: खानपान पर ध्यान रखकर पथरी की समस्या से निजात पाई जा सकती है।

Friday 2 January 2015

किडनी में बार-बार बनती है पथरी



आजकल पथरी रोग लोगों में एक आम समस्या बनता जा रहा है। इस समस्या के पीछे काफी हद तक जीनवशैली से जुड़ी अनियमितताएं जि़म्मेदार होती हैं जैसे ग़लत खान-पान व जरुरत से कम पानी पीने से भी गुर्दे की पथरी का निर्माण होता है। गुर्दे की पथरी सबसे अधिक होती है, जिसके प्रारंभिक चेतावनी संकेत भी हमें मिलते हैं। इस समस्या से बचने के लिए सबसे ज़रूरी होता है इन संकेतों को पहचानना और समय से इसका उपचार कराना। तो चलिये जानते हैं क्या कारण हैं कि बार-बार किडनी में पथरी बन जाती है-
दरअसल गुर्दे की पथरी एक मूत्रतंत्र रोग है जिसमें गुर्दे के अन्दर छोटे-छोटे पत्थर जैसी कठोरता बन जाती हैं, जिन्हें पथरी कहा जाता है। आमतौर पर यह ये पथरियां मूत्र के रास्ते शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं। कई लोगों में पथरियां बार-बार बनती हैं और बिना अधिक तकलीफ के निकल भी जाती हैं, लेकिन यदि पथरी बड़ी हो जाए तो मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर देती है। इस स्थिति में मूत्रांगो के आसपास असहनीय दर्द होता है। मधुमेह रोगियों में गुर्दे की पथरी होने की ज्यादा सम्भावना रहती है।

क्या होती है पथरी

विशेषज्ञों के अनुसार, पथरी का कारण अधिकतर किडनी में कुछ खास तरह के साल्ट्स का जमा हो जाना होता है। इसमें सबसे पहले स्टोन का छोटा खंड (निडस) बनता है, जिसके चारों ओर सॉल्ट जमा होता रहता है। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में पथरी होने की आशंका ज़्यादा होती है। इसके कई जेनेटिक कारण, हाइपरटेंशन, मोटापा, मधुमेह और आंतों से जुड़ी कोई अन्य समस्या भी हो सकती हैं।

गुर्दे की पथरी के लक्षण

गुर्दे की पथरी से पीठ या पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द हो सकता है, जो कुछ मिनटो या घंटो तक बना रह सकता है। इसमें दर्द के साथ जी मिचलाने तथा उल्टी की शिकायत भी हो सकती है। यदि मूत्र संबंधी प्रणाली के किसी भाग में संक्रमण है तो इसके लक्षणों में बुखार, कंपकंपी, पसीना आना, पेशाब आने के साथ-साथ दर्द होना आदि भी शामिल हो सकते हैं मूत्र में रक्त भी आ सकता है। चलिये विस्तार से जानें इसके संकेत-

दर्द के साथ पेशाब आना

गुर्दे की पथरी से पीडि़त लोग अक्सर लगातार या दर्द के साथ पेशाब आने की शिकायत करते हैं। ऐसा तब होताहै जब गुर्दे की पथरी मूत्रमार्ग में मूत्राशय से चली जाती है। ये स्थानांतरण बेहद दर्दनाक होता है और यह अक्सर मूत्र पथ के संक्रमण का कारण भी बनता है।

पीठ दर्द

गंभीर दर्द होना गुर्दे की पथरी से पीडि़त लोगों के लिए एक आम समस्या है, विशेषकर कमर और कमर के निचले हिस्से में (ठीक पसलियों के नीचे जहां  गुर्दे स्थित होते हैं)। दर्द पेट के निचले हिस्से से पेट और जांघ के बीच के भाग में जा सकता है। यह दर्द तीव्र होता है और तंरगों की तरह उठता है।

पेशाब में खून

गुर्दे की पथरी से पीडि़त लोगों का मूत्र अक्सर गुलाबी, लाल या भूरे रंग का आने लगता है। जो कि स्टोन के बढऩे और मूत्रमार्ग ब्लॉक हो जाता है, किडनी में पथरी वाले लोगों के मूत्र में रक्त आ सकता हैं।

मतली और उल्टी

पेट में गड़बड़ महसूस करना और मिचली आना किडनी स्टोन का संकेत हो सकता है और इसमें उल्टियां भी हो सकती हैं। उल्टियां दो कारणों से आती हैं, पहला कारण स्टोन के स्थानांतरण के कारण होना वाला तीव्र दर्द तथा दूसरा इ सलिए क्योंकि गुर्दे शरीर के भीतर की गंदगी (टॉक्सिक) को बाहर करने में मदद करते हैं और जब स्टोन के कारण अवरुद्ध हो जाते हैं तो इन टॉक्सिन्स को शरीर से बाहर निकालने के लिए उल्टी ही एकमात्र रास्ता बचता है। ज़रूरत से कम पानी पीने व फैट और कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार अधिक खाने से भी किडनी स्टोन की समस्या होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि गुर्दे में पथरी की समस्या से ग्रसित मरीजों में 30 फीसदी 25 से 35 वर्ष की आयु वाले होते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि युवाओं में खाने के साथ पानी की बजाय सॉफ्ट ड्रिंक लेने का चलन बढ़ा है। जिसका उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है और लोग कम उम्र में ही किडनी स्टोन की समस्या से ग्रसित हो जाते हैं।

पथरी की जांच और उपचार

मरीज के लक्षण के आधार पर जांच का तरीका तय किया जाता है। रेडियोलॉजिकल इन्वेस्टिगेशन्स जैसे एक्सरे, अल्ट्रा-सोनोग्राफी या कम्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी) के जरिए पथरी की पुष्टि की जाती है। इनमें से सीटी स्कैन सबसे मानक माना जाता है। पथरी का उपचार इसके आकार और जगह पर निर्भर करता है। चार एमएम से कम की पथरी अपने आप या कुछ दवाओं के जरिए यूरिन के रास्ते बाहर निकल जाती है। इसके अलावा मूत्र मार्ग में निचली तरफ आ चुके स्टोन के लिए यूरेट्रोस्कॉपी की जाती है। गुर्दे और ऊपर की ओर के स्टोन के लिए लीथोट्राइप्सी को अपनाया जाता है। किडनी का आकार बढऩे पर नेफ्रोलिथोटॉमी को अपनाया जाता है।

विटामिन सी से गुर्दे की पथरी का खतरा

लंदन. एक नए शोध के मुताबिक रोजाना विटामिन सी लेने वालों को गुर्दे में पथरी होने का खतरा दोगुना हो जाता है। इस बात का पता स्वीडन के स्टॉकहोम में स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीच्यूट के लूरा थॉमस ने लगाया है। उन्होंने कहा है कि लंबे समय से यह संदेह था कि विटामिन सी की अत्यधिक खुराक गुर्दे की पथरी के खतरे को बढ़ाता है। जेएएमए इंटर्नल मेडिसिन जर्नल में छपी रपट के मुताबिक इसका कारण यह है कि शरीर द्वारा अवशोषित कुछ विटामिन सी ऑक्सलेट के रूप में मुत्र के साथ मिल जाता है। यही गुर्दे में पथरी बनने का एक महत्वपूर्ण अवयव होता है। वे छोटे क्रिस्टल के बने होते हैं, जिसका निर्माण ऑक्सलेट के साथ कैल्सियम के संयोग से हो सकता है। थॉमस ने कहा, "विटामिन सी पौष्टिक आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गुर्दे की पथरी के खतरे पर विटामिन सी का कोई भी प्रभाव खुराक पर और जिस पोषक के साथ इसे लिया जा रहा है उस पर निर्भर करता है।" 22 हजार से अधिक अधेड़ों और बुजुर्गो पर 11 वर्षो तक किए गए अध्ययन में पता चला है कि नियमित रूप से विटामिन सी की अलग से खुराक लेने वाले 3.4 प्रतिशत लोगों में अध्ययन के दौरान पहली बार गुर्दे की पथरी विकसित हुई। इसके मुकाबले बिटामिन सी न लेने वाले 1.8 प्रतिशत लोगों में ही गुर्दे की पथरी विकसित हुई।

Thursday 1 January 2015

नव वर्ष-नव ऊर्जा


एक बार फिर एक नया साल दस्तक दे रहा है, पुराने को अलविदा कह कर नव वर्ष का स्वागत कर चुके हैं, ऐसे में हर स्तर के लोग बच्चे, युवा, वृद्ध, महिलाएं, नौकरीपेशा, व्यावसायी और विद्यार्थी सभी नए साल में कुछ न कुछ संकल्पित होकर करने का मन बनाते हैं और यदि इसमें अपनी पूरी क्षमता या ऊर्जा लगाते हैं तो सफलता भी प्राप्त होती है, इसलिए हमें नव वर्ष में ये संकल्प लेना चाहिए कि हम स्वस्थ रहकर हमारी ऊर्जा में वृद्धि करें और नव वर्ष का स्वागत करते हुए अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहें।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...