Monday 19 June 2017

गुर्दा और मूत्र रोग दूर करता है गोरक्षासन



यदि आपको घुटनों, पिंडली और नितम्ब के जोड़ों की कठोरता को दूर करना है या शरीर के जोड़ों में दर्द रहता है तो गोरक्षासन आपके लिए सबसे उत्तम उपाय है। इस आसन से पैर व घुटनें मजबूत होते हैं और लचीलापन आता है। इससे जोड़ों, नाडिय़ों व धमनियों को ऊर्जा मिलती है। पेट में गैस की समस्या हो तो उसे खत्म करता है, गुर्दा रोग तथा मूत्र दोषों को दूर करता है। इस आसन को गोरक्षासन और भद्रासन कहते हैं। इस आसन में मूलाधार चक्र पर ध्यान पड़ता है जिससे कुंडलिनी चक्र को जाग्रत करने में मदद करता है।

गोरक्षासन की विधि

किसी साफ-स्वच्छ और समतल स्थान पर आसन या कंबल आदि बिछाकर बैठ जाएं। फिर अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर सामने की ओर दोनों पैरों के तलवों व एडिय़ों को आपस में मिलाएं। अब सांस लेते हुए हथेलियों को घुटनों पर सीधा करके रखें तथा अंगुलियों को खोलकर व अंगूठे को तर्जनी अंगूली के मूल (जड़) के पास रखें। ध्यान रखें कि शरीर व हाथ सीधा रहें तथा घुटनों को जमीन पर सटाकर रखें। फिर सांस को छोड़े। ठोड़ी को छाती में सटाकर छाती पर दबाव डालें। मूलाधार चक्र पर ध्यान एकाग्र करें तथा दृष्टि भी वही पर टिकाएं। इस आसन कि स्थिति में पहले 3 मिनट तक रहें और बाद में 10 मिनट तक इस आसन का अभ्यास करें।

गोरक्षासन के लाभ

इसके अभ्यास से रोगों में लाभ इस आसन से कुंडलिनी जागृत हो कर सुष्मना नाडिय़ों में प्रवेश करती है। यह घुटनों, पिंडली और नितम्ब के जोड़ों की कठोरता को दूर करता है। इस आसन से पैर व घुटनें मजबूत होते हैं और इसमें लचीलापन आता है। इस आसन से जोड़ों, नाडिय़ों व धमनियों को ऊर्जा मिलती है। यह पेट की गैस को खत्म करता है, गुर्दा रोग तथा मूत्र दोषों को दूर करता है। कमर के नीचे के हिस्से के लिए भी यह आसन लाभकारी होता है तथा यह शरीर को शुद्ध करता है। यह आसन संकल्प शक्ति बढ़ाता है, बुद्धि को बढ़ाता है तथा पाचन शक्ति को मजबूत बनाता है। यह पिंडलियों के दर्द को ठीक करता है तथा नितम्ब के पास के अधिक चर्बी को कम करता हैं।

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